Bhagavad Gita (Hindi) Podcast Por Dvijamani Gaura Das arte de portada

Bhagavad Gita (Hindi)

Bhagavad Gita (Hindi)

De: Dvijamani Gaura Das
Escúchala gratis

Acerca de esta escucha

Bhagavad GitaCopyright 2022 Dvijamani Gaura Das Educación
Episodios
  • Krishna Ka Aashvaasan
    Mar 15 2024

    Assurance from Krishna

    Más Menos
    35 m
  • Bhagavad Gita 6.37-39
    Mar 13 2024
    Bhagavad Gita Chapter 6 Verse 37 to 39अध्याय 6 : ध्यानयोगश्लोक 6 . 37अर्जुन उवाचअयतिः श्रद्धयोपेतो योगच्चलितमानसः | अप्राप्य योगसंसिद्धिं कां कृष्ण गच्छति || ३७ ||अर्जुनः उवाच – अर्जुन ने कहा; अयतिः – असफल योगी; श्रद्धया – श्रद्धा से; उपेतः – लगा हुआ, संलग्न; योगात् – योग से; चलित – विचलित; मानसः – मन वाला; अप्राप्य – प्राप्त न करके; योग-संसिद्धिम् – योग की सर्वोच्च सिद्धि को; काम् – किस; गतिम् – लक्ष्य को; कृष्ण – हे कृष्ण; गच्छति – प्राप्त करता है |भावार्थअर्जुन ने कहा: हे कृष्ण! उस असफल योगी की गति क्या है जो प्रारम्भ में श्रद्धापूर्वक आत्म-साक्षात्कार की विधि ग्रहण करता है, किन्तु बाद में भौतिकता के करण उससे विचलित हो जाता है और योगसिद्धि को प्राप्त नहीं कर पाता ? तात्पर्यभगवद्गीता में आत्म-साक्षात्कार या योग मार्ग का वर्णन है | आत्म-साक्षात्कार का मूलभूत नियम यह है कि जीवात्मा यह भौतिक शरीर नहीं है, अपितु इससे भिन्न है और उसका सुख शाश्र्वत जीवन, आनन्द तथा ज्ञान में निहित है | ये शरीर तथा मन दोनों से परे हैं | आत्म-साक्षात्कार की खोज ज्ञान द्वारा की जाती है | इसके लिए अष्टांग विधि या भक्तियोग का अभ्यास करना होता है | इनमें से प्रत्येक विधि में जीव को अपनी स्वाभाविक स्थिति, भगवान् से अपने सम्बन्ध तथा उन कार्यों की अनुभूति प्राप्त करनी होती है, जिनके द्वारा वह टूटी हुई शृंखला को जोड़ सके और कृष्णभावनामृत की सर्वोच्च सिद्ध-अवस्था प्राप्त कर सके | इन तीनों विधियों में से किसी का भी पालन करके मनुष्य देर-सवेर अपने चरम लक्ष्य को प्राप्त होता है | भगवान् ने द्वितीय अध्याय में इस पर बल दिया है कि दिव्यमार्ग में थोड़े से प्रयास से भी मोक्ष की महती आशा है | इन तीनों में से इस युग के लिए भक्तियोग विशेष रूप से उपयुक्त है, क्योंकि ईश-साक्षात्कार की यह श्रेष्ठतम प्रत्यक्ष विधि है, अतः अर्जुन पुनः आश्र्वस्त होने की दृष्टि से भगवान् कृष्ण से अपने पूर्वकथन की पुष्टि करने को कहता है | भले ही कोई आत्म-साक्षात्कार के मार्ग को निष्ठापूर्वक क्यों न स्वीकार करे, किन्तु ज्ञान की अनुशीलन विधि तथा अष्टांगयोग का अभ्यास इस युग के लिए सामान्यतया बहुत कठिन है, अतः निरन्तर प्रयास होने पर भी मनुष्य अनेक कारणों से असफल हो सकता है | पहला कारण यो यह हो ...
    Más Menos
    59 m
  • Bhagavad Gita 6.4
    Jul 22 2023

    Bhagavad Gita Chapter 6 Verse 4


    अध्याय 6 : ध्यानयोग


    श्लोक 6 . 3


    आरूरूक्षोर्मुनेर्योगं कर्म कारणमुच्यते |

    योगारुढस्य तस्यैव शमः कारणमुच्यते || ३ ||


    आरुरुक्षोः – जिसने अभी योग प्रारम्भ किया है; मुनेः – मुनि की; योगम् – अष्टांगयोग पद्धति; कर्म – कर्म; कारणम् – साधन; उच्यते – कहलाता है; योग – अष्टांगयोग; आरुढस्य – प्राप्त होने वाले का; तस्य – उसका; एव – निश्चय हि; शमः – सम्पूर्ण भौतिक कार्यकलापों का त्याग; कारणाम् – कारण; उच्यते – कहा जाता है |

    भावार्थ


    अष्टांगयोग के नवसाधक के लिए कर्म साधन कहलाता है और योगसिद्ध पुरुष के लिए समस्त भौतिक कार्यकलापों का परित्याग ही साधन कहा जाता है |

    तात्पर्य


    परमेश्र्वर से युक्त होने की विधि योग कहलाती है | इसकी तुलना उस सीढ़ी से की जा सकती है जिससे सर्वोच्च आध्यात्मिक सिद्धि प्राप्त की जाती है | यह सीढ़ी जीव की अधम अवस्था से प्रारम्भ होकर अध्यात्मिक जीवन के पूर्ण आत्म-साक्षात्कार तक जाती है | विभिन्न चढ़ावों के अनुसार इस सीढ़ी के विभिन्न भाग भिन्न-भिन्न नामों से जाने जाते हैं | किन्तु कुल मिलाकर यह पूरी सीढ़ी योग कहलाती है और इसे तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है – ज्ञानयोग, ध्यानयोग और भक्तियोग | सीढ़ी के प्रारम्भिक भाग को योगारुरुक्षु अवस्था और अन्तिम भाग को योगारूढ कहा जाता है |


    जहाँ तक अष्टांगयोग का सम्बन्ध है, विभिन्न यम-नियमों तथा आसनों (जो प्रायः शारीरिक मुद्राएँ ही हैं) के द्वारा ध्यान में प्रविष्ट होने के लिए आरम्भिक प्रयासों को सकाम कर्म माना जाता है | ऐसे कर्मों से पूर्ण मानसिक सन्तुलन प्राप्त होता है जिससे इन्द्रियाँ वश में होती हैं | जब मनुष्य पूर्ण ध्यान में सिद्धहस्त हो जाता है तो विचलित करने वाले समस्त मानसिक कार्य बन्द हुए माने जाते हैं |


    किन्तु कृष्णभावनाभावित व्यक्ति प्रारम्भ से ही ध्यानावस्थित रहता है क्योंकि वह निरन्तर कृष्ण का चिन्तन करता है | इस प्रकार कृष्ण की सेवा में सतत व्यस्त रहने के करण उसके सारे भौतिक कार्यकलाप बन्द हुए माने जाते हैं |

    Más Menos
    1 h y 11 m
adbl_web_global_use_to_activate_webcro805_stickypopup
Todavía no hay opiniones