• A Horrible Destiny I एक भयानक गन्तव्य

  • Dec 29 2023
  • Duración: 5 m
  • Podcast

A Horrible Destiny I एक भयानक गन्तव्य

  • Resumen

  • . . . यीशु जो हमें आने वाले प्रकोप से बचाता है। (1 थिस्सलुनीकियों 1:10) क्या आपको वह समय स्मरण है जब आप बचपन में खो गए थे, या एक खड़ी चट्टान पर फिसल रहे थे, या डूबने वाले थे? फिर अचानक आपको बचा लिया गया। आप किसी प्रकार से जीवित बच गए। आप उसके विषय में सोचते हुए काँप रहे थे जिसे आपने लगभग खो ही दिया था। आप प्रसन्न थे। ओह, अत्यधिक प्रसन्न और धन्यवादी भी। और आप आनन्द के साथ काँप उठे। मैं वर्ष के अन्त में परमेश्वर के प्रकोप से अपने बचाए जाने के विषय में ऐसा ही अनुभव करता हूँ। हमारे घर में दिनभर क्रिसमस के दिन अलाव में आग जलती रही। कभी-कभी कोयले इतने गर्म थे कि जब मैं और आग बढ़ाने के लिए लकड़ी डालता था तो मेरे हाथ में पीड़ा होती थी। मैं नरक में पाप के विरुद्ध परमेश्वर के प्रकोप के भयानक विचार के विषय में सोचकर पीछे हटा और काँप उठा। ओह, वह वर्णन से बाहर कितना भयानक होगा! बड़े दिन की दोपहर मैं एक ऐसी बहन से मिला जिसके शरीर का 87 प्रतिशत से अधिक भाग जल चुका था। वह अगस्त से अस्पताल में ही है। मेरा हृदय उसके लिए बहुत दुःखी हुआ। किन्तु यह कितनी ही अद्भुत बात थी कि मैं उसको परमेश्वर के वचन से आने वाले युग में उसके लिए एक नए शरीर की सुदृढ़ आशा को देने पाया! परन्तु जब मैं वहाँ से वापस आता तो न केवल इस जीवन में उसकी पीड़ा के विषय में सोच रहा था, किन्तु उस चिरस्थायी पीड़ा के विषय में भी सोच रहा था जिससे मैं यीशु के द्वारा बचाया गया हूँ। मेरे साथ मेरे अनुभव को समझने का प्रयास करें। क्या ऐसे काँपते हुए आनन्द के साथ वर्ष को समाप्त करना उचित होगा? पौलुस आनन्दित था कि “यीशु …हमें आने वाले प्रकोप से बचाता है” (1 थिस्सलुनीकियों 1:10)। उसने चेतावनी दी “परन्तु जो…सत्य को नहीं मानते…उन पर प्रकोप और क्रोध पड़ेगा” (रोमियों 2:8)। और “क्योंकि इन्हीं [यौन अनैतिकता, अशुद्धता और लोभ] के कारण आज्ञा न मानने वालों पर परमेश्वर का प्रकोप पड़ता है” (इफिसियों 5:6)। यहाँ वर्ष के अन्त में, मैं पूरी बाइबल को पढ़कर समाप्त करने की अपनी यात्रा को पूरी कर रहा हूँ और अन्तिम पुस्तक प्रकाशितवाक्य पढ़ रहा हूँ। यह परमेश्वर के विजय की, और उन सभी के लिए अनन्त आनन्द की महिमामय नबूवत है “जो जीवन का जल बिना मूल्य” लेते हैं (प्रकाशितवाक्य 22:17)। कोई भी आँसू नहीं होंगे, कोई भी पीड़ा नहीं होगी, ...
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