परशुराम की प्रतीक्षा खण्ड 1,2,3 Parshuram ki Pratiksha Khand 1,2,3 Podcast Por  arte de portada

परशुराम की प्रतीक्षा खण्ड 1,2,3 Parshuram ki Pratiksha Khand 1,2,3

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गरदन पर किसका पाप वीर ! ढोते हो ?शोणित से तुम किसका कलंक धोते हो ?उनका, जिनमें कारुण्य असीम तरल था,तारुण्य-ताप था नहीं, न रंच गरल था;सस्ती सुकीर्ति पा कर जो फूल गये थे,निर्वीर्य कल्पनाओं में भूल गये थे;गीता में जो त्रिपिटक-निकाय पढ़ते हैं,तलवार गला कर जो तकली गढ़ते हैं;शीतल करते हैं अनल प्रबुद्ध प्रजा का,शेरों को सिखलाते हैं धर्म अजा का;सारी वसुन्धरा में गुरु-पद पाने को,प्यासी धरती के लिए अमृत लाने कोजो सन्त लोग सीधे पाताल चले थे,(अच्छे हैं अबः; पहले भी बहुत भले थे।)हम उसी धर्म की लाश यहाँ ढोते हैं,शोणित से सन्तों का कलंक धोते हैं।खण्ड-2हे वीर बन्धु ! दायी है कौन विपद का ?हम दोषी किसको कहें तुम्हारे वध का ?यह गहन प्रश्न; कैसे रहस्य समझायें ?दस-बीस अधिक हों तो हम नाम गिनायें।पर, कदम-कदम पर यहाँ खड़ा पातक है,हर तरफ लगाये घात खड़ा घातक है।घातक है, जो देवता-सदृश दिखता है,लेकिन, कमरे में गलत हुक्म लिखता है,जिस पापी को गुण नहीं; गोत्र प्यारा है,समझो, उसने ही हमें यहाँ मारा है।जो सत्य जान कर भी न सत्य कहता है,या किसी लोभ के विवश मूक रहता है,उस कुटिल राजतन्त्री कदर्य को धिक् है,यह मूक सत्यहन्ता कम नहीं वधिक है।चोरों के हैं जो हितू, ठगों के बल हैं,जिनके प्रताप से पलते पाप सकल हैं,जो छल-प्रपंच, सब को प्रश्रय देते हैं,या चाटुकार जन से सेवा लेते हैं;यह पाप उन्हीं का हमको मार गया है,भारत अपने घर में ही हार गया है।है कौन यहाँ, कारण जो नहीं विपद् का ?किस पर जिम्मा है नहीं हमारे वध का ?जो चरम पाप है, हमें उसी की लत है,दैहिक बल को कहता यह देश गलत है।नेता निमग्न दिन-रात शान्ति-चिन्तन में,कवि-कलाकार ऊपर उड़ रहे गगन में।यज्ञाग्नि हिन्द में समिध नहीं पाती है,पौरुष की ज्वाला रोज बुझी जाती है।ओ बदनसीब अन्धो ! कमजोर अभागो ?अब भी तो खोलो नयन, नींद से जागो।वह अघी, बाहुबल का जो अपलापी है,जिसकी ज्वाला बुझ गयी, वही पापी है।जब तक प्रसन्न यह अनल, सुगुण हँसते है; है जहाँ खड्ग, सब पुण्य वहीं बसते हैं।वीरता जहाँ पर नहीं, पुण्य का क्षय है,वीरता जहाँ पर नहीं, स्वार्थ की जय है।तलवार पुण्य की सखी, धर्मपालक है,लालच पर अंकुश कठिन, लोभ-सालक है।असि छोड़, भीरु बन जहाँ धर्म सोता है,पातक प्रचण्डतम वहीं प्रकट होता है।तलवारें सोतीं जहाँ बन्द म्यानों में,किस्मतें वहाँ सड़ती ...
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