इस बार खुद को सुंदर पाया है Podcast Por  arte de portada

इस बार खुद को सुंदर पाया है

इस बार खुद को सुंदर पाया है

Escúchala gratis

Ver detalles del espectáculo

Acerca de esta escucha

इस बार खुद को सुंदर पाया है

नाक में नथनी
गले में प्यारा सा हार पाया है
जिस में छुपे एक नन्हे से शीशे ने चेहरे का नूर बताया है
इस बार खुद को सुंदर पाया है।

कंधे जितने बाल मुस्कुरा रहे हैं आज
माथे पर छोटी सी बिंदिया शायद उड़ा रही है लाखों की निंदिया बिना किसी छुअन के चेहरे पर कोई चमक लाया है
इस बार खुद को सुंदर पाया है।

शांति से भंग मेरे कंगन कई घुंगरू से भरे हैं
लगता है जैसे सुनी कलाई पर सरगम बन के मिले हैं
इन कंगनों के इंतजार ने मेरी कलाइयों को खूब तड़पाया है
इस बार खुद को सुंदर पाया है

आज नीले रंग के कुर्ते को लाल आंचल से सजाया है
कई अरसों बाद ही सही पर अपने पन का एहसास आया है
इस बार घर की याद को इन कपड़ों ने भगाया है
इस बार खुद को सुंदर पाया है

इस बार दिए की ज्योत ने मेरे मन में एक दीप जलाया है
जैसे खुद को खुद से मिलाया है इस बार चेहरे की चमक ने आंखों को मुस्कुराना सिखाया है
वैसे ही जैसे खुलती जुल्फों ने जीने का तरीका बताया है
इस बार खुद को पहले से भी ज्यादा सुंदर पाया है
क्योंकि डर से जीत आत्मा विश्वास का दीप जलाया है
इस बार खुद को सुंदर पाया है।।
adbl_web_global_use_to_activate_webcro805_stickypopup
Todavía no hay opiniones